Khat

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पहले बात कुछ ना थी अब बातें बहुत हुआ बातों से लगाव तेरी बात कुछ और ख़त तेरे संभाले बैठा पढ़ने को रोज़ चली हवा इक, बिखरी है बात हर ओर सारी बातें छुपाऊं ख़त चुन के उठाऊं पढ़ूं तीखे से जवाब तेरे घाव को दबाऊं थाम लेने की कला भी सीखी बहते अश्कों को अब लिखुं मैं तुझ ही पे गीत तुझको सुनाऊं पर रैप छोड़ो शायरी भी करती पसंद नहीं लगे वो किताब जैसी बैठी है जो बंद कहीं मिलना मैं चाहूं उसे पढ़ना भी चाहूं मसरूफ़ है वो जानी मिलने को रज़ामंद नहीं छोड़ो तकल्लुफ़ चलो मिलने हम आते हैं रास्ते बता दे तेरे शहर को जो आते हैं गली है कौन-सी है कौन-सा मोहल्ला है घर कौन-सा वो जिसमें दिल दुखाए जाते हैं सनम सितम दे जनम के सब ज़खम दे वो रूठे बात-बात पे खुद की फ़िर कसम दे मैं बार-बार गलती मान उसको यूं फुसलाता नोंक-झोंक तीखी उसकी मुझको फिर नज़म दे हम बैठे उसके ग़म में वो मेरे मुल्तसम थे मैं लिखता उसके मन की सारी अपनी फ़िर कलम से फ़िर रूठे क्यों वो हम से दूरियां हैं किस बरहम से मिलते ख़्वाब में भी ना होता दर्द अब मरहम से दिल में जो मेरे तेरे लिए दफ़न हुए अनकहे से राज हैं आ तो सही हमनशीं बैठे यहीं तेरे इंतज़ार में... सुन हम-दम चलो कुछ तो कदम संग चलता हूं मैं जैसे चलती हवाएं सुन हम-दम भूले मुझको सनम जैसे भूला था मैं भी तेरी सारी खताएं दवा-ए-दिल बस तेरी ही आवाज़ है लिख दीं तारीफें कई फ़िर क्यूं नाराज़ है एक-एक दिन गिनता हूं तुझसे दूर मैं गिन ना मैं पाऊं पर तेरे जो नक़ाब हैं अब हाथ में ना दिखे ज्यादा देर मेरे जाम है फ़ोन बजे लगे मुझे तेरा ही पैगाम है पतझड़ के मौसम में बिखरे गुलिस्तां से आया नहीं तू सब बना बयाबान है सितमगर ये नरगिस हम वाक़िफ ना थे वफ़ा के वो मेरी हां क़ाबिल ना थे हम शामिल थे उसके हर ख़ुशी गम में हुए पर दिल में हम दाख़िल ना थे तितलियां बैठीं जो आके रुख़्सार पे तेरे ही लबों से लेती सारी वो मिठास है इन्हीं खूबियों से तेरी हार बैठे दिल हम हारे खुद से ही तेरी खामियों को जान के चलो, माना सच आज तेरी हर इक बात को झूठा ही सही माना पूरी कायनात को गुनाह गिननें बैठे हम दिन में जो तेरे थके गिनते गिनते और भूले सब रात को हाथों की लकीरों में आए ही नी तुम मेरे ख़्वाबों की दुनिया में छाये रहे तुम हम तुमसे बिछड़कर हम ना रहे और हमसे बिछड़कर ना ही रहे तुम खो गये कहीं मिले नहीं ख़बर छपी है इश्तहार में ढूंढता तुम्हें बस तुम्हें चाहूं तुझको बे-शुमार मैं सुन हम-दम चलो कुछ तो कदम संग चलता हूं मैं जैसे चलती हवाएं सुन हम-दम भूले मुझको सनम जैसे भूला था मैं भी तेरी सारी खताएं

Khat

Megh · 1718640000000

पहले बात कुछ ना थी अब बातें बहुत हुआ बातों से लगाव तेरी बात कुछ और ख़त तेरे संभाले बैठा पढ़ने को रोज़ चली हवा इक, बिखरी है बात हर ओर सारी बातें छुपाऊं ख़त चुन के उठाऊं पढ़ूं तीखे से जवाब तेरे घाव को दबाऊं थाम लेने की कला भी सीखी बहते अश्कों को अब लिखुं मैं तुझ ही पे गीत तुझको सुनाऊं पर रैप छोड़ो शायरी भी करती पसंद नहीं लगे वो किताब जैसी बैठी है जो बंद कहीं मिलना मैं चाहूं उसे पढ़ना भी चाहूं मसरूफ़ है वो जानी मिलने को रज़ामंद नहीं छोड़ो तकल्लुफ़ चलो मिलने हम आते हैं रास्ते बता दे तेरे शहर को जो आते हैं गली है कौन-सी है कौन-सा मोहल्ला है घर कौन-सा वो जिसमें दिल दुखाए जाते हैं सनम सितम दे जनम के सब ज़खम दे वो रूठे बात-बात पे खुद की फ़िर कसम दे मैं बार-बार गलती मान उसको यूं फुसलाता नोंक-झोंक तीखी उसकी मुझको फिर नज़म दे हम बैठे उसके ग़म में वो मेरे मुल्तसम थे मैं लिखता उसके मन की सारी अपनी फ़िर कलम से फ़िर रूठे क्यों वो हम से दूरियां हैं किस बरहम से मिलते ख़्वाब में भी ना होता दर्द अब मरहम से दिल में जो मेरे तेरे लिए दफ़न हुए अनकहे से राज हैं आ तो सही हमनशीं बैठे यहीं तेरे इंतज़ार में... सुन हम-दम चलो कुछ तो कदम संग चलता हूं मैं जैसे चलती हवाएं सुन हम-दम भूले मुझको सनम जैसे भूला था मैं भी तेरी सारी खताएं दवा-ए-दिल बस तेरी ही आवाज़ है लिख दीं तारीफें कई फ़िर क्यूं नाराज़ है एक-एक दिन गिनता हूं तुझसे दूर मैं गिन ना मैं पाऊं पर तेरे जो नक़ाब हैं अब हाथ में ना दिखे ज्यादा देर मेरे जाम है फ़ोन बजे लगे मुझे तेरा ही पैगाम है पतझड़ के मौसम में बिखरे गुलिस्तां से आया नहीं तू सब बना बयाबान है सितमगर ये नरगिस हम वाक़िफ ना थे वफ़ा के वो मेरी हां क़ाबिल ना थे हम शामिल थे उसके हर ख़ुशी गम में हुए पर दिल में हम दाख़िल ना थे तितलियां बैठीं जो आके रुख़्सार पे तेरे ही लबों से लेती सारी वो मिठास है इन्हीं खूबियों से तेरी हार बैठे दिल हम हारे खुद से ही तेरी खामियों को जान के चलो, माना सच आज तेरी हर इक बात को झूठा ही सही माना पूरी कायनात को गुनाह गिननें बैठे हम दिन में जो तेरे थके गिनते गिनते और भूले सब रात को हाथों की लकीरों में आए ही नी तुम मेरे ख़्वाबों की दुनिया में छाये रहे तुम हम तुमसे बिछड़कर हम ना रहे और हमसे बिछड़कर ना ही रहे तुम खो गये कहीं मिले नहीं ख़बर छपी है इश्तहार में ढूंढता तुम्हें बस तुम्हें चाहूं तुझको बे-शुमार मैं सुन हम-दम चलो कुछ तो कदम संग चलता हूं मैं जैसे चलती हवाएं सुन हम-दम भूले मुझको सनम जैसे भूला था मैं भी तेरी सारी खताएं

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